Monday, March 31, 2008

ये विचित्र मनोभाव

कभी कभी सोचता हूँ तो चकित रह जाता हूँ कि ये इंसान भी क्या अनोखा है । हर मनुष्य प्यार करता है, ईर्ष्या करता है, लज्जित होता है , ग्लानिबध्ह होता है, दुखी होता है , सुखी होता है, कामुक होता है। आश्चर्य इस बात पर है कि यह सारे भाव यथार्थत सभी में होते हैं । बस किसी में कम तो किसी में अधिक। है कोई मनुष्य जो समझ ही ना सकता हो कि दुखी होने पर क्या बीतती है , या सुख का क्या आनंद होता है या लज्जित होने पर नयन क्यों झुक जाते हैं या प्रेम में कैसे ह्रदय झूम उठता है ? ऐसा प्रतीत होता है कि हम सब एक ही जड़ के अंश हैं । लेकिन यही सोचते सोचते मन में एक जिज्ञासा जाग उठती है । क्या ऐसे भी भाव हैं जिनसे हम अबतक अनभिज्ञ हैं ? इस जीवन में कभी ऐसी परिस्तिथियाँ आयी ही न हों की वह प्रकट हुए हों। साधू-संत कहते हैं कि भगवान् के दर्शन के बाद न कुछ देखने को रह जाता न कुछ इच्छा करने को। कैसा होता होगा वह छड़ जिसमें इंसान बेसुध होकर आनंद की लहरों में डुबकियां लगाते नहीं थकता। क्या मनुष्य की छीड़ बुद्धि उस दशा की कल्पना कर सकती है ? यह तो केवल एक उदाहरण है। और न जाने ऐसे कितने अकल्पनीय भाव होंगे जो हमसे अबतक अछूते हैं, संभवा जिनके बिना यह जीवन-अनुभूति अधूरी रह जाए।

4 comments:

jj said...

abbe ye to main bol raha tha
raat yun kehne laga mujh se gagan ka chaand
aadmi bhi kya anokha jeev hota hai
mushkilein apni bana ke
aap hi fansta
aur phir bechain ho jaagta na sota hai
:)

jj said...

matlab main shuruat ki baat kar raha tha! baad mein to gehri baat kar gaye tum

Prashant said...

kabhi tumhain kuch experience ho aisa to jaroor batana :)

Anonymous said...
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